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53/100 जैविक खेती जैविक कीटनाशक एवं रोग नियंत्रण कृषि में कीट व रोग हमेशा ही किसानों व वैज्ञानिकों को लिए बड़ी चुनौती रहे हैं| दुनिया भर में कीट व रोग नियंत्रण के रासायनिक तरीके बुरी तरह बुरी तरह नाकामयाब साबित हो चुके हैं| महंगे कीटनाशकों का खर्च उठाना किसानों के बस की बात नहीं रही| आज या साबित हो चुका है कि रसायनों का प्रयोग खेती में जमीन, भूमिगत जल, मानव स्वास्थ्य, फसल की गुणवत्ता व पर्यावरण हेतु बहुत नुकसानदायक है| कीटों व रोगों के नियन्त्रण का एक मात्र स्थायी समाधान है कि किसान भिन्न-भिन्न फसल चक्रों को अपनायें ताकि प्रकृति पर आधारित कीट व फसलों का आपसी प्राकृतिक सामंजस्य बना रहे और प्रकृति का संतुलन न गड़बड़ाए| खेती में लगातार रसायनों के प्रयागों से जमीन जहरीली हो चुकी है| पर्यावरण के साथ=साथ मानव स्वास्थ्य पर इनका बुरा प्रभाव पड़ रहा है| जहरीले व मंहगे रासायनिक कीटनाशकोण व रोग नियंत्रकों के कर्ण किसान कर्जे के बोझ में दबकर आत्महत्या को मजबूर हो रहे हैं| इस दुष्चक्र से किसानों को बाहर निकालने के लिए जरुरी है कि वे खेती में जैविक विकल्पों के अपनाएँ| जैविक कीटनाशक रोग एवं कीट को कम या खत्म करने के साथ-साथ जमीं की उर्वरता भी बढाते हैं| यह हमारे अपने आसपास के प्राकृतिक संसाधनों द्वारा अपने हाथों से तैयार होते हैं| इनसे किसानों की बाजार पर निर्भरता भी खत्म होती है| किसानों के द्वारा प्रयोग किया कुछ सरल एवं जांचे परखे तरीकों का प्रयोग कर खेती में रोगों व कीटों से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है| कीट व रोग नियंत्रण एवं प्रबन्धन हेतु आवश्यक है कि: उत्तम गुणवत्ता वाले देसी बीजों व कम्पोस्ट खादों का प्रयोग करें| भूमि में जैविक तत्वों को बढ़ाकर केंचुए व सूक्ष्म जीवों के अनुकूल वातावरण बनायें|कीटों के प्राकृतिक दुश्मनों की रक्षा करें| कीट भक्षक जीव जैसे पक्षी, मेढक, सांप तथा मित्र कीटों के बसने की पारिस्थितियाँ बनाएं व प्रकृति में विविधता बने रहने दें|भूमि के एक हिस्से में ऐसी फसल उगाएँ जो कीट भक्षक प्राणियों को आकर्षित करती है, अथवा दूर भागती हो| इसके अतिरिक्त अपने खेतों का नियमित भ्रमण कर फसल का अवलोकन करते रहें ताकि समय रहते उपचार किया जा सके| विभिन्न रोगों व कीटों के नियंत्रण हेतु कुछ उपयोगी व सरल तरीके निम्नवत हैं नीम की पत्तियां एक एकड़  जमीन में छिड़काव के लिए 10-12 किलो पत्तियों का प्रयोग करें| इसका प्रयोग कवक जनित रोगों, सुंडी, माहू, इत्यादि हेतु अत्यंत लाभकारी होता है| 10 लीटर घोल बनाने के लिए 1 किलो पत्तियों को रात भर पानी में भिंगो दें| अगले दिन सुबह पत्तियों को अच्छी तरह कूट कर या पीस कर पानी में मिलकर पतले कपड़े से छान लें| शाम को छिड़काव से पहले इस रस में 10 ग्राम देसी साबुन घोल लें| नीम की गिरी नीम की गिरी का 20 लीटर घोल तैयार करने के लिए 1 किलो नीम के बीजों के छिलके उतारकर गिरी को अच्छी प्रकार से कूटें| ध्यान रहे कि इसका तेल न निकले| कुटी हुई गिरी को एक पतले कपड़े में बांधकर रातभर 20 लीटर पानी में भिंगो दें| अगले दिन इस पोटली को मसल-मसलकर निचोड़ दें व इस पानी को छान लें| इस पानी में 20 ग्राम देसी साबुन या 50ग्राम रीठे का घोल मिला दें| यह घोल दूध के समान सफेद होना चाहिए| इस घोल को कीट व फुफंद नाशक के रूप में प्रयोग किया जाता है| नीम का तेल नीम के तेल का 1 लीटर घोल बनाने के लिए 15 से 30 मि०ली० तेल को 1 लीटर पानी में अच्छी तरह घोलकर इसमें 1 ग्राम देसी साबुन या रीठे का घोल मिलाएं| एक एकड़ की फसल में 1 से 3 ली० तेल की आवश्यकता होती है| इस घोल का प्रयोग बनाने के तुरंत बाद करें वरना तेल अलग होकर सतह पर फैलने लगता है जिससे यह घोल प्रभावी नहीं होता | नीम के तेल की छिड़काव से गन्ने की फसल में तना बंधक व सीरस बंधक बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है| इसके अतिरिक्त नीम के तेल कवक जनित रोगों में भी प्रभावी है| नीम की खली कवक (फुफन्दी) कवक (फुफन्दी) व मिट्टी जनित रोगों के लिए एक एकड़ खेत में 40 किलो नीम की खली को पानी व गौमूत्र में मिलाकर खेत की जुताई करने पहले डालें ताकि यह अच्छी तरह मिट्टी में मिल जाए| नीम की खली का घोल एक एकड़ की खड़ी फसल में 50 लीटर नीम की खली का घोल का छिड़काव करें| 150 लीटर घोल बनाने के लिए किलोग्राम नीम की खली को 50 लीटर पानी में एक पतले कपड़े में पोटली बनाकर रातभर के लिए भिगो दें| अगले दिन इसे मसलकर व छानकर 50 यह बहुत ही प्रभावकारी कीट व रोग नियंत्रक है| डैकण (बकायन) पहाड़ों में नीम की जगह डैकण को प्रयोग में ला सकते हैं| एक एकड़ के लिए डैकण की 5 से 6 किलोग्राम पत्तियों की आवश्यकता होती है| छिड़काव पत्तियों की दोनों सतहों पर करें|  नीम या डैकण पर आधारित कीटनाशकों का प्रयोग हमेशा सूर्यास्त के बाद करना चाहिए क्योंकि सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों के कारण इसके तत्व नष्ट होने का खतरा होता है| साथ ही शत्रु कीट भी शाम को ही निकलते हैं जिससे इनको नष्ट किया जा सकता है| डैकण के तेल, पत्तियों, गिरी व खल के प्रयोग व छिड़काव की विधि भी नीम की तरह है| करंज (पोंगम) करंज फलीदार पेड़ है जो मैदानी इलाकों में पाया जाता है| इसके बीजों से तेल मिलता है जो कि रौशनी के लिए जलाने के काम भी आता है| इसकी खल को खाद व पत्तियों को हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है| इसका घोल बनाने के लिए पत्तियां, गिरी, खल व तेल का प्रयोग करते हैं| यह खाने में विशाक्त व उपयोगी कीट प्रतिरोधक व फुफंदी नाशक है| करंज के तेल, पत्तियों, गिरी व खल का घोल बनाने के लिए मात्रा व छिड़काव की विधि भी नीम तरह ही है| गोमूत्र गोमूत्र कीटनाशक के साथ-साथ पोटाश व नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत भी है| इसका ज्यादातर प्रयोग फल, सब्जी तथा बेलवाली फसलों को कीड़ों व बीमारियों से बचाने के लिए किया जाता है| गोमूत्र को 5 से 10 गुना पानी के साथ मिलाकर छिड़कने से माहू, सैनिक कीट व शत्रु कीट मर जाते हैं| लहसुन मिर्च, प्याज आदि की पौध में लगने वाले कीड़ों की रोकथाम के लिए लहसुन का प्रयोग किया जाता है| इसके लिए 1 किलो लहसुन तथा 100 ग्राम देसी साबुन को कूटकर 5 ली० पानी के साथ मिला देतें हैं व फिर पानी को छानकर इसका छिड़काव करते है| चुलू व सरसों  की खली यह बहुत ही प्रभावकारी फुफन्दी नियंत्रक है हेतु एक एकड़ में 40 किलो चुलू व सरसों की खली को बुवाई से पहले खेतों में डालें| खट्टा मठठा यह बहुत ही प्रभावकारी फुफन्द नियंत्रक है| एक सप्ताह पुराने 2 लीटर खट्टे मट्ठे का 30 लीटर पानी में घोल कर इसका खड़ी फसल पर छिड़काव करना चाहिए| एक एकड़ खेत में 6 लीटर खट्टा मट्ठा पर्याप्त होता है| तम्बाकू व नमक सब्जियों की फसल में किसी भी कीट व रोग की रोकथाम के लिए 100 ग्राम तबाकू व 100 ग्राम नमक को 5 ली० पानी में मिलाकर छिड़कें| इसको और प्रभावी बनाने के लिए 20 ग्राम साबुन का घोल तथा 20 ग्राम बुझा चूना मिलाएँ| शरीफा तथा पपीता शरीफा व पपीता प्रभाव कीट व रोगनाशक हैं| यह सुंडी को बढ़ने नहीं देते| इसके एक किलोग्राम बीज या तीन किलोग्राम पत्तियों व फलों के चूर्ण को 20 ली० पानी में मिलाएँ व छानकर छिड़क दें| मिट्टी का तेल रागी (कोदा) व झंगोरा (सांवा) की फसल पर जमीन में लगने वाले कीड़ों के लिए मिट्टी के तेल में भूसा मिलाकर बारिश से पहले या तुरंत बाद जमीन में इसका छिड़काव  करें| इससे सभी कीड़े मर जाते हैं| धान की फसल में सिंचाई के स्रोत पर 2 ली० प्रति एकड़ की दर से मिट्टी का तेल डालने से भी कीड़े मर जाते हैं| बीमार पौधे व बाली बीमार पौधे की रोगी बाली को सावधानी से तुरंत निकाल दें साथ ही रोगी पौधे को उखाड़कर जला दें| इससे फसल में फुफन्दी, वाइरस व बैक्टीरिया जनित रोगों को पूरे खेत में फैलने से रोका जा सकता है| जैविक घोल परम्परागत जैविक घोल के लिए डैकण व अखरोट की दो-दो किलो सुखी पत्तियाँ, चिरैता के एक एक किलो, टेमरू व कड़वी की आधा-आधा किली पत्तियों को 50 ग्राम देसी साबुन के साथ कूटकर पाउडर बनाएँ| जैविक घोल तैयार करें| इसमें जब खूब झाग आने लगे तो घोल प्रयोग के लिए तैयार हो जाता है| बुवाई के समय से पहले व हल से पूर्व इस घोल को छिड़कने से मिट्टी जनित रोग व कीट नियंत्रण में मदद मिलती है| छिड़काव के तुरंत बाद खेत में हल लगाएँ| एक एकड़ खेत के लिए 200 ली० घोल पर्याप्त है| पंचगव्य पंचगव्य बनाने के लिए 100 ग्राम गाय का घी, 1 ली० गौमूत्र, 1 ली० दूध, तथा 1 किलो ग्राम गोबर व 100 ग्राम शीरा या शहद को मिलाकर मौसम के अनुसार चार दिन से एक सप्ताह तक रखें| इसे बीच-बीच में हिलाते रहें| उसके बाद इसे छानकर 1:10 के अनुपात में पानी के साथ मिलकर छिड़कें| पंचगव्य से सामान्य कीट व बीमारियों पर नियत्रण के साथ-साथ फसल को आवश्यक पोषक तत्व भी उपलब्ध होते हैं| गाय के गोबर का घोल गाय के गोबर का सार बनाने के लिए 1 किलो गोबर को 10 ली० पानी के साथ मिलाकर टाट के कपड़े से छानें| यह पत्तियों पर लगने वाले माहू, सैनिक कीट आदि हेतु प्रभावी है| दीमक की रोकथाम गन्ने में दीमक रोकथाम के लिए गोबर की खाद में आडू या नीम के पत्ते मिलाकर खेत में उनके लड्डू बनाकर रखें| बुबाई के समय एक एकड़ खेत में 40 किलो नीम की खल डालें| नागफनी की पत्तियाँ 10 किलो, लहसुन 2 किलो, नीम के पत्ते 2 किलो को अलग-अलग पीसकर 20 लीटर पानी में उबाल लें| ठंडा होने पर उसमें 2 लीटर मिट्टी का तेल मिलाकर 2 एकड़ जमीन में डालें| इसे खेत में सिंचाई के समय डाल सकते हैं| चूहों का नियंत्रण कच्चे अखरोट के छिलके निकालकर उन्हें बारीक पीसकर चटनी बना लें| इस चटनी के साथ आटे की छोटी-छोटी गोलियों को फसल के बीच-बीच व चूहे के बिलों में रखें| चूहे यह गोलियाँ खाने से मर जाते हैं| इसके अतिरिक्त देसी पपीते के छिलके या घोड़े या खच्चर की लीद को चूहों के बिलों के पास व खेतों में डालने से चूहे भाग जाते हैं या मर जाते हैं| जैविक बाड़ कीटों व रोगों पर नियंत्रण हेतु खेतों में औषधीय पौधों की बाढ़ भी कारगर साबित होती है| धान के खेत में मेंढ़ में बीच-बीच में मडुवा या गेंदा लगाने से कीड़े दूर भागते हैं तथा रोग भी कम लगते हैं| खेतों की मेढ़ों पर गेंदें के फूल व तुलसी के पौधों अथवा डैकण के पेड़, तेमरू, निर्गुण्डी (सिरोली, सिवांली), नीम, चिरैता व कड़वी की झाड़ियों की बाड़ लगाएँ| खेतों में लगे पेड़ों को काटकर व जलाकर नष्ट न करें यह कीटनाशी  के रूप में व जानवरों से हमारी फसल की रक्षा करते हैं|

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